होलिका दहन एक कृ​षि हितार्थ यज्ञ है

*होलिका दहन एक कृ​षि हितार्थ यज्ञ है।*

होलिका दहन के नाम पर प्रदूषण आदि की मिथ्या वार्ता करने वाले धर्मान्तरण वाले लोग हैं। यह एक पूर्णत: यज्ञ है। अत: जिस समय होलिका दहन करें उस समय प्रयास करें कि होलिका उपलों की हो एवं उसमें कालेतिल, जौ, चावल, शक्कर व औषधियों भी भेंट करें। इसमें कालेतिल दोभाग, जौ,चावल व शक्कर तीनों एक एक भाग तथा औषधियाँ एक भाग होता है। औषधियों में अग्रलिखित औषधियाँ हैं जिन्हें उप​लब्धि या मूल्य के हिसाब से 20 ग्राम से 50 ग्राम तक ले सकते हैं। छरीला या सर्वोषधि, अगर, तगर, जाफर, जावित्री, लवंग, इलायची छोटी व बड़ी, गूगल, तालसी पत्र, नागकेशर, घोड़ावच, इन्द्रजौ, नागरमोथा, जटामांसी, अश्वगंधा, गुलाबपुष्प, नीमगिलाय, दालचीनी, पद्माख, सुगंधकोकिला, बालछड, शतावरी, दारूहल्दी, आम्बाहल्दी, सामान्य हल्दी, लालाचन्दन, श्वेत चन्दन, कर्पूरकाचरी, पितपापड़ा। इनको दरदरा करके मिलालें एवं इसी भार के चावल जौ शक्कर व इसके दुगुने वजन के काले तिल। पुन: इसमें आधाभाग सूखा नारियल कदूकस करके मिलाएँ एवं सामग्री अनुसार न्यूनतम 50 ग्राम देशी घी मिलाकर तैयार करें एवं जिस समय होलिका का पूजन करें उस समय इसे। होलिका में भेंट करें।

होलिका दहन एक कृ​षि हितार्थ यज्ञ है

होलिका दहन के नाम पर प्रदूषण आदि की मिथ्या वार्ता करने वाले धर्मान्तरण वाली गुण्डी गैंग के लोग हैं। इनका उद्देश्य ही भारतीय धर्म एवं संस्कृति को नष्ट करना है। इसी कारण ये भारतीय उत्सवों का उपहास उढ़ाते हैं अथवा उनमें दोष ढूँढते हैं।

वस्तुत: होलिका एक पूर्णत: यज्ञ है। अत: जिस समय होलिका दहन करें उस समय प्रयास करें कि होलिका उपलों की हो एवं उसमें कालेतिल, जौ, चावल, शक्कर व औषधियों भी भेंट करें। इसमें कालेतिल दोभाग, जौ,चावल व शक्कर तीनों एक एक भाग तथा औषधियाँ एक भाग होता है। औषधियों में अग्रलिखित औषधियाँ हैं जिन्हें उप​लब्धि या मूल्य के हिसाब से 20 ग्राम से 50 ग्राम तक ले सकते हैं। *(1) छरीला या सर्वोषधि, (2)अगर, (3)तगर, (4)जाफर, (5)जावित्री, (6)लवंग, (7—8)इलायची छोटी व बड़ी, (9)गूगल, (10)तालसी पत्र, (11)नागकेशर, (12)घोड़ावच, (13)इन्द्रजौ, (14)नागरमोथा, (15)जटामांसी, (16)अश्वगंधा, (17)गुलाबपुष्प,(18)नीमगिलाय, (19)दालचीनी, (20)पद्माख, (21)सुगंधकोकिला, (22)बालछड, (23)शतावरी, (24)दारूहल्दी, (25)आम्बाहल्दी, (26)सामान्य हल्दी, (27)लालाचन्दन, (28)श्वेत चन्दन, (29)कर्पूरकाचरी, (30)पितपापड़ा, (31)नीम के पत्ते,(32) आँवला,(33)पंचमेवा,(34)केसर, (35) तालमखाना।* इनको दरदरा करके मिलालें एवं इसी भार के चावल जौ शक्कर व इसके दुगुने वजन के काले तिल। पुन: इसमें आधाभाग सूखा नारियल कदूकस करके मिलाएँ एवं सामग्री अनुसार या न्यूनतम 50 ग्राम देशी घी मिलाकर तैयार करें एवं जिस समय होलिका का पूजन करें उस समय इसे होलिका की प्रज्वलित अग्नि या अन्त में सुलगती लपटों  में भेंट करें।

इसका उद्देश्य समझने के लिये वैदिक विज्ञान विशारद पण्डित मधुसूदन ओझा जी के विचारों को समझना होगा। होलिका का समय है ऋतु परिवर्तन एवं नये अन्न उत्पन्न होने का ऐसे में भारतीय ऋषि जो कि सर्वज्ञ एवं क्रा​न्तदर्शी हैं उनसे भूल होने की संभावना नहीं हो सकती।

होली एक यज्ञ है उपरोक्त सामग्री के साथ जब होलिका दहन किया जाता है तो उससे सर्वप्रथम वहाँ का वातावरण शुद्ध होता है। यह समय मच्छरों के उत्पन्न होने का भी है तो  इससे बढ़ी मात्रा में हानिकारक विषाणुओं एवं मच्छरों का नाश होता है।

पुन: जब यह होली का धुँआ आकाश में जाता है तो पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण से बाहर नहीं चला जाता वह एक सीमा तक ऊपर उठ कर ठहर जाता है। होली के बाद दो परिवर्तन होते हैं। एक शीतला सप्तमी का उत्सव एवं दूसरा प्रकृति में ग्रीष्म ऋतु का आगमन

ग्रीष्म ऋतु के आगमन के सूर्य नारायण भगवान् अपनी सूर्य नाड़ियों से पृथ्वी के जल का शोषण करना प्रारम्भ करते हैं एवं यह जल भी ऊपर उठकर उसी स्थान पर जा कर ठहरता है जहाँ होली के औषधियों वाला धूँआ पूर्व में ही ठहरा हुआ है। वहाँ इसके कण जल के साथ मिलते हैं। एवं जब वर्षाकाल  आता है उस समय ये जल के साथ मिलकर पृथ्वी पर बरसते हैं। एवं इसके परिणाम स्वरूप पृथ्वी पर दो तत्वों का शोधन होता है। प्रथमत: तो यह जल स्वयं ही शुद्ध एवं औष​धीय गुणों से युक्त होता है एवं द्वितीय यह जल पृथ्वी के जिस स्थान पर पड़ता है उसकी ऊपरी परत जिसे मृदा कहा जाता है उसे पोषण प्रदान करता है। यह मृदा तीनइंच तक की कही गई है एवं किसान व बैल द्वारा चलाए जानेवाले हल के अन्तर्गत तीन इंच की खुदाई होती है। इसके विपरीत ट्रेक्टर द्वारा की काश्तकारी से 6—9 इंच की खुदाई होती है जो कि हानिकारक है।

खैर यह होलिका एक प्रकार का यज्ञ है एवं इसके द्वारा सर्वप्रथम वायुमण्डल की शुद्धि तदुपरान्त जल एवं स्थल मण्डल की शुद्धि होती है। अत: यह पूर्णत: वैज्ञानिक एवं हमारे लिये हितकर है।

​होली के बाद सात दिवसों के भीतर शीलसप्तमी का पर्व आता है। यह पर्व चेचक को रोकने के ​उद्देश्य से मनाया जाता है। चेचक बहुधा बाल्यावस्था में होता है। ऐसे में होलिका समय में तैयार हुई राख का बहुत उत्तम उपयोग होता है। ग्रामीण अंचलों में आज भी परिपाटी है कि शील सप्तमी के दिन प्रात: छोटे छोटे बालकों की पूजा तिलक करके उन्हें एक वस्त्र लंगेाट पहना कर राख में लोटने के लिये कहा जाता है। एवं यह बड़े ही उत्साह के साथ किया जाता है। ऐसे में होलिका दहन के समय औषधियों के संयोग से बनी हुई राख का प्रयोग बालकों के शरीर में चेचक के टीकाकरण का प्रभाव रखती है। एवं बालकों में चेचक होने अथवा चेचक के महामारी के रूप में फैलने से रोकने के लिये अच्छा व सशक्त योग है।

अत: यह होलिका व भारतीय संस्कृति का दूसरा वैज्ञानिक व मनुष्य के लिये सर्वाधिक उपयुक्त प्रमाण है। होलिका के द्वितीय दिवस धुलण्डी पर अगले आलेख में लिखेंगे

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