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आज की कहानी का शीर्षक- ‘शादी का तोहफा’

विनीता,मीना को रेशमा दीदी की शादी का न्यौता देने आयी है, और कल विनीता के घर में संगीत समारोह है।
विनीता- मीना.....मुझे तुमसे एक सलाह चाहिए, मैंने अभी तक रेशमा दीदी के लिए कोई तोहफा नहीं खरीदा है।  तुम बताओ न मैं उनको क्या तोहफा दूँ?

मीना दुपट्टा देने की सलाह देती है।
विनीता- नहीं मीना, मैं उन्हें कोई खास तोहफा देना चाहती हूँ। 

मीना कहती है कि तुमने तो शोभा काकी से मिट्टी के वर्तन बनाना सीखा है तो क्यों न कोई वर्तन बना कर दो?
मीना, विनीता शोभा काकी के घर पहुंची। 

विनीता- शोभा काकी आप तो जानती ही हैं कि अगले हफ्ते रेशमा दीदी की शादी है,तो में उनको एक तोहफा देना चाहती हूँ...अपने हाथ की बनी सुराही। 

शोभा काकी ने विनीता को गीली मिट्टी दी और विनीता ने जल्दी से एक सुन्दर सी सुराही तैयार कर दी।
शोभा काकी- एक बात का ध्यान रखना विनीता, अभी सुराही की मिट्टी कच्ची है।  इसे अच्छी तरह से धूप में सुखाना तथा बाद में इसे भट्टी की आंच दिलवाना। 
विनीता कहती है, हाँ.....और बाद में इसे तरह-तरह के रंगों से सजाऊँगी।
मिठ्ठू चहका-‘रंगों से सजाऊँगी,तोहफा सुन्दर बनाउंगी’

और अगले दिन........
शोभा काकी और मीना, विनीता के घर पहुँचे।

शोभा काकी, विनीता से सुराही को धूप में रखने की बात पूंछती हैं कि तभी विनीता के पिताजी की आवाज लाउडस्पीकर पर गूंजती है.....

विनीता के पिताजी- “आप सभी मेहमानों का हार्दिक स्वागत है। इससे पहले कि संगीत समारोह शुरु हो मैं आप सबको एक खुशखबरी देना जाता हूँ.....दरअसल रेशमा के होने वाले ससुर जी ने अपने छोटे बेटे राहुल के लिए हमारी विनीता का हाथ माँगा है। ....अब मेरी दोनों बेटियों की डोलियाँ एक साथ ही उठेंगी। ”

यह बात सुनकर विनीता एकदम घबरा गयी और भाग कर अपनी माँ के पास पहुँची।  शोभा काकी और मीना भी उसके पीछे-पीछे गए।

शोभा काकी- विनीता ठीक कह रही है निर्मला बहन, अभी उसकी उम्र ही क्या है?
निर्मला चाची- क्या बात कर रही हो शोभा बहन? पूरे 16 की हो गयी है विनीता।

मीना भी निर्मला चाची को समझाने की कोशिश करते हुए कहती है कि बहिन जी कहती हैं कि लड़कियों की शादी १८ और लड़कों की शादी २१ साल से पहले करना एक कानूनी अपराध है।

..........लेकिन निर्मला चाची को समझाने सब कोशिशें बेकार जाती हैं।

शोभा काकी- लेकिन निर्मला बहन विनीता तो अभी बच्ची है...........

शोभा काकी समझाती हैं- छोटी उमर में लड़की हो या लड़का दोनों ही शादी का बोझ उठाने के लिए तैयार नहीं 
होते....न ही शरीर से न ही दिमाग से।

निर्मला चाची- सब बेकार की बातें हैं, समय अपने आप सब सिखा देता है।
(विनीता के पिताजी आवाज लगाते हैं)
विनीता-शोभा काकी, मैं एक बार पिताजी से बात करना चाहती हूँ..क्या पता पिताजी मेरी बात माँ जाएँ और.........

मीना- शोभा काकी, अगर चाचा जी और निर्मला चाची को बिना कहे किसी तरह इस बात का एहसास कराया जाए कि उन्हें अभी विनीता दीदी की शादी नहीं करनी चाहिए, तो शायद................¬..।

शोभा काकी- शाबाश मीना! बहुत अच्छा सुझाव दिया तुमने।

शोभा काकी-(विनीता से) तुम जल्दी से अपनी सुराही ले आओ।
विनीता भाग कर सुराही ले आती है।  सुराही की मिट्टी अभी भी गीली है। ...शोभा काकी कहती हैं मैं जैसा बोलूं वैसा ही करना।

शोभा काकी- (विनीता से) जब निर्मला बहन पानी मगवायें तो तुम इसी में पानी लेकर जाना।

और थोड़ी देर में जब विनीता की माँ ने मेहमानों के लिए पानी लाने को कहा तो विनीता उसी गीली मिट्टी की सुराही में पानी भरकर ले आयी। .....एक मेहमान को पानी देते समय सुराही टूट गयी...और सारा पानी उस मेहमान के ऊपर गिर गया।

मौसी जी- ओहो! ये क्या किया विनीता?

सारा पानी मौसी जी के ऊपर गिरा और सुराही के टूटे हुए टुकडे भी।  ये देख विनीता के पिताजी, विनीता को समझाने लगे कि कच्ची मिट्टी को पहले अच्छी तरह सुखाना चाहिए, फिर भट्टी में आग दिलवानी चाहिए.....तब कहीं जाके वो पक्की होती है।  विनीता बेटी याद रखो हर चीज का एक तरीका,एक समय होता है।

निर्मला चाची- और क्या?तुम्हें थोडा इंतज़ार करना चाहिए था, तुमने इतना भी नहीं सोचा कि कच्ची मिट्टी से बनी सुराही भला पानी का बोझ कैसे उठाएगी?

शोभा काकी- मैं भी आपको यही समझा रही थी निर्मला बहन कि हर चीज का एक तरीका,एक सही समय होता है।

शोभा काकी समझाती हैं कि अपनी विनीता भी इस सुराही की कच्ची मिट्टी की तरह है,जैसे ये कच्ची सुराही पानी का बोझ नहीं सह पायी ठीक वैसे ही विनीता भी कच्ची उमर में शादी का बोझ नहीं उठा सकती।  मुझे डर है कि कच्ची उमर में शादी होने के कारण कहीं ये भी सुराही के कच्चे टुकड़ों की तरह बिखर न जाए। ........भाई साहब लड़कियों की शादी 18 ,लड़कों की शादी 21 से पहले करना कानूनी अपराध है।

विनीता के पिताजी को ये बात समझ आ जाती है, और वह राहुल के पिताजी को भी समझायेंगे।


आज का गीत- 

सबसे हमको प्यार है प्यारे,बात कहें हम सच्ची=२ 
हर एक चीज जो हो समय पर बस वही है अच्छी।  
अरे बिना वजह क्यों सोचना क्यों करनी माथा-पच्ची, 
हर एक चीज जो हो समय पर बस वही है अच्छी। 
अरे बचपन नाम है खेलकूद का बचपन है मस्ती भरा
बचपन में शादी जो कर ली सब रह जाएगा धरा। 
उमर है पढ़ने लिखने की कुछ बनके दिखलाने की
नहीं उमर ये शादी के बंधन में फँस जाने की। 
गाँठ बाँध ले बात मेरी हर बच्चा और बच्ची
हर एक चीज जो हो समय पर बस वही है अच्छी। 
शादी...कोई...खेल...न¬हीं...है...ये...है..¬.जिम्मेदारी...
करनी...पड़ती...है...ज¬िसके...लिए...बड़ी...त¬ैयारी....। 
अरे पहले हो जाओ तैयार टन से मन से धन से
ताकि रहे न कोई शिकायत तुन्हें कभी जीवन से। 
बात मेरी ये बड़ी जोरदार है नहीं समझना कच्ची। 
हर एक चीज जो हो समय पर बस वही है अच्छी। 


आज का खेल- ‘कड़ियाँ जोड़ पहेली तोड़’

 म से मेरा नाम शुरु है 
र पे खत्म हो जाता 
नहीं मैं गायक फिर भी
सबके कान में गाना गाता।

 कभी उडूं मैं इधर-उधर
कभी न बैठूं खाली
जिसके पास मैं जाऊं
मुझको देख बजाये ताली। 

 उत्तर-‘मच्छर’

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