अनजान आदमी

आज की कहानी का शीर्षक-
 ‘अनजान  व्यक्ति  ~ अनजान आदमी’

मीना की बहिन जी स्कूल में पूरी क्लास को कुछ बता रहीं है।

बहिन जी- प्यारे बच्चों जैसा की तुम सब जानते हो, कल स्कूल का वार्षिकोत्सव है। और कल स्कूल में एक ख़ास मेहमान आने वाले हैं.....भारतीय क्रिकेट टीम के मशहूर खिलाड़ी- मोहित सिंह...स्पिन गेंदबाज मोहित सिंह। वो तुम सब से मिलेंगे,तुमसे बात करेंगे और तुम सब को ऑटोग्राफ भी देंगे।


सभी बच्चे खुशी से उछल पड़ते हैं। सुनील लालाजी की दुकान की तरफ दौड़ लगा देता है....नया बैट खरीदने। सुनील कहता है, ‘कल जब मोहित सिंह हमारे स्कूल आयेंगे तो मैं नए बैट पे उनका ऑटोग्राफ लूँगा। मीना भी सुनील के साथ हो लेती है।

लालाजी- आओ बच्चों, क्या लेना है? खम्भा उखाड के।

सुनील- लालाजी....कोई बढ़िया सा क्रिकेट बैट दिखाइए।

....सुनील को जो बैट पसंद आता है उसकी कीमत है- २००/- , लेकिन सुनील के पास १५०/- ही है जो वह अपनी गुल्लक से निकाल के लाया है।

लालाजी उससे कहते है, ‘कोई बात नहीं बेटा, घर जाओ ५०/- और लाओ फिर ये बैट ले जाओ, खम्भा उखाड़ के।

सुनील उदास हो वापस लौटता है। मीना सुनील से कहती है, ‘ऑटोग्राफ तो तुम क्रिकेट बाल या फिर अपनी डायरी में भी ले सकते हो।

सुनील- नहीं मीना, नए बैट पर ऑटोग्राफ लेने की बात ही अलग होती है।

नेपथ्य से आवाज़ गूंजती है- ‘चूड़ी वाला.....चूड़ी वाला....।’

मीना चूड़ी लेने जाती है तथा सुनील वहीँ मीना के लौटने का इंतज़ार करने लगता है। मीना ५-१० मिनट चूड़ियों की दूकान पर रुकी और जब वो वापस आयी तो.....सुनील वहां नहीं था।

सुनील पीछे से आवाज़ लगाता है, वह बर्फी खा रहा है जो उसे रमेश भईया ने दी है।

मीना- रमेश भईया, ये रमेश भईया कौन है?

सुनील मीना को सारी बात बताता है, साथ ही कहता है, ‘रमेश भईया बैट खरीदने के लिए पैसे भी देंगे।’

मीना,सुनील को समझाती है कि, ‘बहिन जी ने कहा था कि हमें कभी भी किसी अनजान आदमी से कोई मिठाई या खाने पीने की चीजें नहीं लेनी चाहिए।’

तभी रमेश पीछे से आकर कहता है, ‘सुनील तुम्हें मेरे घर चलना होगा।’

मीना, सुनील से वहां से चलने को कहती है....

सुनील, रमेश से कहता है कि वह कल उसके घर आ जायेगा...रमेश का घर पहाड़ी के पीछे कच्ची ईंटों वाल घर है।

और जब मीना और सुनील, मीना के घर पहुंचे तब......सुनील मीना से , ‘उसकी गुल्लक मैं पैसे हैं।’ झूंठ क्यों बोला? मीना उसे समझाती है।

और उदास हो सुनील अपने घर चला गया और अगले दिन स्कूल में....

मोहित सिंह २-३ घंटे में यहाँ पहुँच जायेंगे लेकिन सुनील अभी तक स्कूल नहीं पहुँचा।

बहिन जी- ये कैसे हो सकता है? सुनील तो मोहित सिंह का बड़ा फैन है।

मीना ने बहिन जी को सारी बात बताई। पूरी बात सुनने के बाद बहिन जी ने सुनील के घर जाने का फैसला किया।

सुनील के पिताजी- क्या? सुनील स्कूल नहीं पहुँचा, लेकिन बहिन जी सुनील तो सुबह ही स्कूल के लिए निकल गया था।

मीना- इसका मतलब सुनील बाज़ार गया होगा..बैट खरीदने.....। चाचाजी क्या सुनील ने आपसे कुछ पैसे मांगे थे?..बैट खरीदने के लिए।

सुनील के पिताजी बताते है, ‘ कल रात सुनील कुछ बात तो करना चाह रहा था लेकिन मैं अपने काम की वजह से थोड़ा परेशान था तो...मैंने ध्यान नहीं दिया और उसे चुप रहने को कहा।’

मीना ने सुनील के पिताजी को सारी बात बताई। जिसे सुनके सुनील के पिताजी बोले, ‘ बहिन जी मुझे सुनील की बहुत चिंता हो रही है।’

मीना रमेश का घर जानती है। सब वहां पहुँचते है तो मकान पे ताला लगा पाते हैं।

तभी मिठ्ठू चिल्लाया, ‘ताला लगा हुआ है,सुनील रस्सी से बंधा हुआ है।’

सुनील के पिताजी दरवाजा तोड़ कर अन्दर जाते हैं। बहिन जी ने तुरंत पुलिस को फोन किया....पुलिस वहां पहुँची और उन्होंने रमेश को गिरफ्तार कर लिया। रमेश एक खतरनाक अपराधी था जो भोले भाले बच्चों को रुपये पैसे,....चॉकलेट, मिठाई बगैरह का लालच देके उन्हें अपने जाल में फँसा लेटा था और उन्हें शहर ले जा कर उनसे मजदूरी करवाता था।

सुनील को अपनी गलती का अहसास हुआ। साथ ही सुनील के पिताजी को भी अपनी भूल का अहसास होता है।
बहिन जी समझाती हैं, “भाई साहब, हर बच्चे के माता पिता को अपने घर का माहौल ऐसा रखना चाहिए जिससे बच्चा खुद को आज़ाद,खुश और सुरक्षित महसूस करे। माता-पिता को बच्चे के साथ एक दोस्ती का रिश्ता बना के रखना चाहिए ताकि बच्चा उनसे अपने दिल की बात करते हुए झिझके नहीं। क्योंकि जिन बच्चों को घर में प्यार और सही सलाह नहीं मिलती तो रमेश जैसे अपराधी की चिकनी चुपड़ी बातों में फस जाते हैं।”

मीना और सुनील, बहिन जी के साथ जल्दी से स्कूल पहुंचे।........मोहित­ सिंह ने एक नए बैट पर सुनील को ऑटोग्राफ जो उसके पिताजी खरीदकर लाये थे।

मीना,सुनील को समझाती है कि, ‘बहिन जी ने कहा था कि हमें कभी भी किसी अनजान आदमी से कोई मिठाई या खाने पीने की चीजें नहीं लेनी चाहिए।’



आज का गीत-
हम हैं समझदार..........हम है होशियार.........
समझदार हम,होशियार हम, नहीं है भोले-भाले
किसी गैर के झांसे में हम नहीं हैं आने वाले-२
लाख दे हमको लालच कोई कितनी बात बनाले
किसी गैर के झांसे में हम नहीं हैं आने वाले-२

बेटा...मेरे साथ चलो, मैं तुम्हारी नौकरी लगवा दूँगा। खूब पैसे कमाओगे।
बेटी....मेरे साथ चलो, तिम्हें टीवी फिल्मों में काम दिलवाऊंगा...खूब नाम कमाओगी।

ऐसी चिकनी चुपड़ी बातें करे जो कोई गैर
हाथ जोड कर मना करें हम अपना मुंह ले फेर
सही फैसला लेने हम जरा न करके देर
बुने कोई तो बुनता रहे अपनी बातों के जाले
क्योंकि...... किसी गैर के झांसे में हम नहीं हैं आने वाले-२

अरे बेटा यहाँ अकेले क्यों बैठे हो? चलो मेरे साथ, मेले मे चलते हैं।

अगर कभी हम खुद को ऐसी मुश्किल मे है पाते
हिम्मत से हम काम हैं लेते जरा भी ना घबराते
माँ बाबा या टीचर जी को सारी बात बताते
हमें बचाने को टीचर जी है और हैं घर वाले
क्योंकि.... किसी गैर के झांसे में हम नहीं हैं आने वाले-२


आज का खेल- ‘अक्षरों की अन्त्याक्षरी’
  • शब्द- ‘मदद’
‘म’- मुंह (अपने मुंह मियां मिठ्ठू बनना)
‘द’- दुम (दुमम दबा के भागना)
‘द’- दांत( दांतों तले उंगली दबाना)

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